होम लोन देने से पहले बैंक करते हैं लीगल वेरिफिकेशन, जानें क्यों होता है जरूरी- चेक करें डीटेल्स
प्रॅापर्टी के लीगल और टेक्निकल वेरिफिकेशन करने के बाद ही बैंक आपके होम लोन एप्लीकेशन को अप्रूव करते हैं. फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट बॅारोअर की क्रेडिट वर्थीनेस को जानने के लिए रिस्क असेसमेंट टूल्स का इस्तेमाल करते हैं.
लीगल वेरिफिकेशन को डिलिजेंटली किया जाता है. इसे होम लोन जैसे लॉन्गटर्म बिग टिकट मॅार्गेज के मामले में किया जाता है. एप्लीकेंट की क्रेडिट वर्थीनेस की जांच के साथ बैंक प्रॅापर्टी सेल के लिए कई तरह की चेकिंग भी करते हैं. ये प्रॅापर्टी लोन की सेफ्टी के रूप में काम करता है, इसलिए ये इन्श्योर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है कि बैंक एक सेफ प्रॅापर्टी के लिए पैसा उधार दे रहा है. इस तरह बैंक प्रॅापर्टी का लीगल और टेक्निकल वेरिफिकेशन करने के बाद ही लोन देते हैं. एक प्रॅापर्टी में इंवेस्ट को कम्पलीट करने के लिए प्रॅापर्टी को किसी भी तरह की लीगल प्रॅाब्लम में नहीं फंसा होना चाहिए. भले ही खरीदार अपने तरीके से प्रॅापर्टी की कानूनी स्थिति की जांच करते हैं, लेकिन अगर वे हाउसिंग फाइनेंस की मदद से खरीदारी कर रहे हैं तो उन्हें बॅारोअर से एक्सट्रा हेल्प मिलती है. सभी बैंक, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां (एचएफसी) और नॅान-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (एनबीएफसी) प्रॅापर्टी और उससे रिलेटेड दस्तावेजों की जांच करने के लिए एक स्पेशल टीम भेजती हैं, ताकि इसकी लीगल कंडीशन का पता लग सके.
लीगल वेरिफिकेशन के जांच के बाद क्या होता है
आपके हर डॅाक्यूमेंट की जांच करने के बाद लीगल टीम बैंक को एक रिपोर्ट तैयार करेगी. और इस रिपोर्ट को भेजेगी. अगर आपकी रिपोर्ट में कोई प्रॅाब्लम नहीं है तो आपको होम लोन मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन अगर प्रॅापर्टी के टाइटल के साथ कोई प्रॅाब्लम है, तो टीम इसे रिपोर्ट में बताएगी. इसके बाद बैंक आपके होम लोन एप्लीकेशन को रिजेक्ट कर देगा.
होम लोन पर पड़ता है इफेक्ट
कोई भी बैंक कभी भी ऐसी प्रॅापर्टी को खरीदने के लिए पैसे नहीं देगा जो किसी भी तरह की लीगल कॅाम्पलीकेंसी या डिस्प्यूट में फंसी हो. अगर लीगल टीम एक नेगेटिव रिपोर्ट भेजती है तो आपको लोन नहीं मिलता है. लेकिन ये बायर के लिए काफी मददगार होता है, क्योंकि इससे वे गलत डील में फंसने से बच जाते हैं.
अंडरकंस्ट्रक्शन प्रॅापर्टी के लिए क्या है नियम
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अगर प्रॅापर्टी under-construction है और पहले से इसका कोई ओनर नहीं है, तो बायर को सभी डॅाक्यूमेंट पेश करने होंगे. इससे ये साबित होता है कि कंस्ट्रक्शन शुरू करने के लिए बिल्डर के पास जरुरी परमिशन हैं. इन डॅाक्यूमेंट में कमेंसमेंट सर्टिफिकेट, अलग-अलग ऑथोरिटी से एनओसी, भार प्रमाण पत्र, ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट आदि शामिल हैं. इसके साथ ही आपको बिल्डर-बायर एग्रीमेंट भी दिखाना होगा. अगर सेलर प्रॅापर्टी का अकेला ओनर है और पहले कभी भी ओनरशिप में कोई बदलाव नहीं हुआ है तो पेपर वर्क बहुत आसान हो जाता है. इस मामले में बैंक की लीगल टीम को केवल ओरिजनल परचेज डॅाक्यूमेंट दिखाने होंगे.
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09:59 AM IST